Saturday, July 28, 2018

दड़बे की मुर्गी !

दड़बे की मुर्गी !

एक शिष्य अपने गुरु के पास पहुंचा और बोला, ” लोगों को खुश रहने के लिए क्या चाहिए?”
“तुम्हे क्या लगता है?”, गुरु ने शिष्य से खुद इसका उत्तर देने के लिए कहा.

खुश रहने पर कहानी
शिष्य एक क्षण के लिए सोचने लगा और बोला, “मुझे लगता है कि अगर किसी की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हो रही हों… खाना-पीना मिल जाए …रहने के लिए जगह हो…एक अच्छी सी नौकरी या कोई काम हो… सुरक्षा हो…तो वह खुश रहेगा.”
यह सुनकर गुरु कुछ नहीं बोले और शिष्य को अपने पीछे आने का इशारा करते हुए चलने लगे.
वह एक दरवाजे के पास जाकर रुके और बोले, “इस दरवाजे को खोलो…”
शिष्य ने दरवाजा खोला, सामने मुर्गी का दड़बा था. वहां मुर्गियों और चूजों का ढेर लगा हुआ था… वे सभी बड़े-बड़े पिंजड़ों में कैद थे….
“आप मुझे ये क्यों दिखा रहे हैं.” शिष्य ने आश्चर्य से पूछा.
इस पर गुरु शिष्य से ही प्रश्न-उत्तर करने लगे.
“क्या इन मुर्गियों को खाना मिलता है?'”
“हाँ.”
“क्या इनके पास रहने को घर है?”
“हाँ… कह सकते हैं.”
“क्या ये यहाँ कुत्ते-बिल्लियों से सुरक्षित हैं?”
“हम्म”
“क्या उनक पास कोई काम है?”

“हाँ, अंडा देना.”
“क्या वे खुश हैं?”
शिष्य मुर्गियों को करीब से देखने लगा. उसे नहीं पता था कि कैसे पता किया जाए कि कोई मुर्गी खुश है भी या नहीं…और क्या सचमुच कोई मुर्गी खुश हो सकती है?
वो ये सोच ही रहा था कि गुरूजी बोले, “मेरे साथ आओ.”
दोनों चलने लगे और कुछ देर बाद एक बड़े से मैदान के पास जा कर रुके.  मैदान में ढेर सारे मुर्गियां और चूजे थे… वे न किसी पिंजड़े में कैद थे और न उन्हें कोई दाना डालने वाला था… वे खुद ही ढूंढ-ढूंढ कर दाना चुग रहे थे और आपस में खेल-कूद रहे थे.
“क्या ये मुर्गियां खुश दिख रही हैं?” गुरु जी ने पूछा.
शिष्य को ये सवाल कुछ अटपटा लगा, वह सोचने लगा…यहाँ का माहौल अलग है…और ये मुर्गियां प्राकृतिक तरीके से रह रही हैं… खा-पी रही रही है…और ज्यादा स्वस्थ दिख रही हैं…और फिर वह दबी आवाज़ में बोला-
“शायद!”
“बिलकुल ये मुर्गियां खुश है, बेतुके मत बनो,” गुरु जी बोले, ” पहली जगह पर जो मुर्गियों हैं उनके पास वो सारी चीजें हैं जो तुमने खुश रहने के लिए ज़रूरी मानी थीं.
उनकी मूलभूत आवश्यकताएं… खाना-पीना, रहना सबकुछ है… करने के लिए काम भी है….सुरक्षा भी है… पर क्या वे खुश हैं?
वहीँ मैदानों में  घूम रही मुर्गियों को खुद अपना भोजन ढूंढना है… रहने का इंतजाम करना है… अपनी और अपने चूजों की सुरक्षा करनी है… पर फिर भी वे खुश हैं…”
गुरु जी गंभीर होते हुए बोले, ” हम सभी को एक चुनाव करना है, “या तो हम दड़बे की मुर्गियों की तरह एक पिंजड़े में रह कर जी सकते हैं एक ऐसा जीवन जहाँ हमारा कोई अस्तित्व नहीं होगा… या हम मैदान की उन मुर्गियों की तरह जोखिम उठा कर एक आज़ाद जीवन जी सकते हैं और अपने अन्दर समाहित अनन्त संभावनाओं को टटोल सकते हैं…तुमने खुश रहने के बारे में पूछा था न… तो यही मेरा जवाब है… सिर्फ सांस लेकर तुम खुश नहीं रह सकते… खुश रहने के लिए तुम्हारे अन्दर जीवन को सचमुच जीने की हिम्मत होनी चाहिए…. इसलिए खुश रहना है तो दड़बे की मुर्गी मत बनो!”
written by vaibhav singh

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