Friday, July 27, 2018

सपनों का घर

सपनों का घर


किसी शहर से कुछ दूर एक किसान अपने गाँव में रहता था । वैसे तो वह संपन्न था पर फिर भी वो अपने जीवन से खुश नहीं था । एक दिन उसने निश्चय किया कि वो अपनी सारी ज़मीन -जायदाद बेच कर किसी अच्छी जगह बस जाएगा ।
अगले ही दिन उसने एक जान -पहचान के रियल एस्टेट एजेंट को बुलाया और बोला , ” भाई , मुझे तो बस किसी तरह ये जगह छोड़नी है, बस कोई सही प्रॉपर्टी दिल दो तो बात बन जाए !”

“क्यों , क्या दिक्कत हो गयी यहाँ आपको ?”, एजेंट ने पुछा ।
“आओ मेरे साथ “, किसान बोला , ” देखो कितनी समस्याएं हैं यहाँ पर , ये उबड़-खाबड़ रास्ते देखो , और ये छोटी सी झील देखो , इसके चक्कर में पूरा घूम कर रास्ता पार करना पड़ता है। ।। इन छोटे -छोटे पहाड़ों को देखो , जानवरों को चराना कितना मुश्किल होता है … और ये देखो ये बागीचा , आधा समय तो इसकी सफाई और रख-रखाव में ही चला जाता है … क्या करूँगा मैं ऐसी बेकार प्रॉपर्टी का…”
एजेंट ने घूम -घूम कर इलाके का जायजा लिया और कुछ दिन बाद किसी ग्राहक के साथ आने का वादा किया ।
इस घटना के एक – दो दिन बाद किसान सुबह का अखबार पढ़ रहा था कि कहीं किसी अच्छी प्रॉपर्टी का पता चल जाए जहाँ वो सब बेच -बाच कर जा सके ।
तभी उसकी नज़र एक आकर्षक ऐड पर पड़ी , ” लें सपनो का घर , एक शांत सुन्दर जगह , प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर, सुन्दर झील और पहाड़ियों के बीच , शहर की भीड़ -भाड़ से उचित दूरी पर बसाएं एक स्वस्थ -सुन्दर आशियाना । संपर्क करें -XXXXXXX”
किसान को ये ब्यौरा बहुत पसंद आया , वो बार-बार उस ऐड को पढ़ने लगा , पर थोड़ा ध्यान देने पर उसे लगा कि ये तो उसी की प्रॉपर्टी का ऐड है , इस बात की पुष्टि करने के लिए उसने दिए हुए नंबर पर फ़ोन लगाया और सचमुच ये उसी की प्रॉपर्टी का ऐड था ।
तब किसान को एहसास हुआ कि वो वाकई में अपनी मनचाही जगह पर रहता है और ये उसकी गलती थी कि उसने अपनी ही चीजों को हमेशा गलत ढंग से देखा । अब किसान वहीँ रहना चाहता था ; उसने तुरंत अपने एजेंट को कॉल किया और इस ऐड को हटाने को कहा ।
Friends, इस किसान की तरह ही कई बार हमें भी अपनी life से बहुत complaints होती हैं , लगता है कि हमारा जीवन ही सबसे बेकार है , हमारी नौकरी में ही सबसे ज्यादा प्रेशर है , हमारी पर्सनालिटी ही सबसे unattractive है…
पर क्या आपने कभी दूसरों की नज़र से अपनी life को देखने की कोशिश की है ?
क्या वाकई आपकी लाइफ इतनी problematic है या आपने खुद ज़रुरत से ज्यादा उसे ऐसा बना रखा है ?
कहीं किसान की तरह आप भी अपने जीवन के सौंदर्य को अनदेखा तो नहीं कर रहे हैं ?
कहीं आपको भी आपकी खुशियां गिनाने के लिए किसी paper-advertisement की ज़रुरत तो नहीं ?

Written by Vaibhav singh

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