Panchtantra Stories in Hindi With Moral
पंचतंत्र की तीसरी कहानी: सुराही का जिन्न
एक गरीब मछुआरा बहुत परिश्रम कर के अपनी रोज़ी रोटी कमाता था। वह एक दिन में केवल चार बार समुद्र में जाल डाल कर मछ्ली पकड़ने के नियम पर चलता था। अपने उस नियम के कारण उसे कई बार घर पर खाली हाथ लौट आना पड़ता था। मछुवाराे की पत्नी भी अपने पति के इस नियम से परेशान थी।
रोज़ की तरह एक दिन मछुआरा अपना जाल ले कर समुद्र पर जा पहुंचा। उसने अपने नियमानुसार पहली बार जाल समुद्र में फेंका और थोड़ी देर बाद उसे पानी से ऊपर खींचा। उसने देखा की जाल में कंकड़ पत्थर और भुरभुरी हड्डियाँ फसी हुई थीं।
मछुआरे नें फिर प्रयास किया इस बार उसे कचरे से भरा हुआ एक ज़ंग खाया बक्सा मिला जिसकी कीमत कुछ भी नहीं थी।
तीसरी बार मछुआरे नें जब समुद्र में अपना जाल डाला तब उसे फिर से नाकामी हाथ लगी। अब मछुआरे की हिम्मत जवाब दे चुकी थी। वह आसमान की और निराशा भरी निगाहों से देखने लगा और अपनी बुरी किस्मत को कोसने लगा।
कुछ देर बात खुद को हिम्मत देते हुए उसने चौथी और आखरी बार अपना जाल समुद्र में फेंका।
इस बार जब उसने अपना जाल समुद्र से ऊपर खींचा तो उसने देखा की उसके जाल में कोई मछ्ली तो नहीं फसी पर एक बड़ी सी पीतल की प्राचीन सुराही फंसी थी। उसने जल्दी से उस सुराही को अपने थैले में भर लिया और अपना जाल समेट कर घर चला गया।
खाली हाथ लौटने पर हेमशा की तरह उसे थोड़ी देर अपनी पत्नी की जली-कटी बातें सुननी पड़ी\ उसके बाद वह चुपचाप अपने कमरे में चला गया और सुराही को देखने लगा। उत्सुकता वश जैसे ही उसने उस सुराही का ढक्कन खोला तो उसमें से धुंवा बाहर आने लगा और पल भर में एक विशाल काय जिन्न उसके सामने आ खड़ा हुआ।
सुराही से बाहर निकलते ही जिन्न बोला-
स्वामी, मैं आपका सेवक हूँ…आप जो कहेंगे मैं करूँगा लेकिन याद रखिये मैं कभी खाली नहीं बैठ सकता…यदि आप मुझे कोई काम नहीं बता पाए तो मैं फ़ौरन आपका वध कर दूंगा और हेमशा-हेमशा के लिए आज़ाद हो जाऊँगा।
मछुवारा बोला, “जाओ मेरे परिवार के लिए श्रेष्ठ भोजन की व्यवस्था करो!”
और पलक झपकते ही मायावी जिन्न उसके समक्ष स्वादिष्ट भोजन का ढेर लगा देता है।
मछुवारा घबरा जाता है कि इतनी जिन्न ने इतनी जल्दी ये काम कैसे कर दिया?
इस बार वह उसे बड़ा काम देता है, “जाओ मेरे रहने के लिए एक आलिशान महल तैयार करो!”
अभी मछुवारा ठीक से अपना आदेश देता भी नहीं है कि जिन्न वहां एक आलिशान महल खड़ा कर देता है।मछुवारा अब और भी घबरा जाता है उसे समझ ही नहीं आता कि जिन्न को ऐसा कौन सा काम दे जिसमे वो उलझा रहे।
उधर जिन्न मछुवाराे के सर पर खड़ा चीखता है, ” बताओ अब क्या करना है?”
तभी मछुवाराे को एक तरकीब सूझती है वह मुस्कुराते हुए कहता है, “जाओ महल के बीचो-बीच एक लम्बा -मोटा बांस गाड़ दो।”हो गया।” ,जिन्न बोलता है।
बहुत अच्छे अब जाओ उस बांस पे बार-बार चढ़ो-उतरो और जब तक मैं दोबारा नहीं बुलाता तब तक मत आना!
जिन्न मुंह लटकाया चला गया और मछुवारा अपने परिवार के साथ आराम से उस महल में रहने लगा।
Moral of the story: बुद्धि से बड़ी से बड़ी समस्या को सुलझाया जा सकता है।
Panchtantra Stories in Hindi With Moral
पंचतंत्र की चौथी कहानी: तीन काम
एक बार दो गरीब दोस्त किसी नगर के सेठ के पास काम मांगने जाते हैं। कंजूस सेठ तुरंत उन्हे काम पर रख लेता है और पूरे साल काम करने पर साल के अंत में दोनों को 12-12 स्वर्ण मुद्राएँ देने का वचन देता है।
सेठ यह भी शर्त रखता है कि अगर उन्होंने काम ठीक से नहीं किया या किसी आदेश का उलंघन किया तो उस एक गलती के बदले 4 सुवर्ण मुद्रायेँ तनख्वाह से काट ली ।
दोनों दोस्त सेठ की शर्त मान जाते हैं और पूरे साल जी-तोड़ महेनत करते हैं और सेठ के हर एक आदेश का अक्षरश पालन करते हैं।
जब काम करते-करते एक साल पूरा होने को आता है तो दोनों सेठ के पास 12-12 स्वर्ण मुद्राएँ मांगने पहुँचते हैं।
मुद्राएँ मांगने पर सेठ बोलता हैं, “अभी साल का आखरी दिन पूरा नहीं हुआ है और मुझे तुम दोनों से आज ही तीन और काम करवाने हैं।”
- पहला काम- छोटी सुराही में बड़ी सुराही डाल कर दिखाओ।
- दूसरा काम- दूकान में पड़े गीले अनाज को बिना बाहर निकाले सुखाओ।
- तीसरा काम- मेरे सर का सही-सही वजन बताओ।
“यह तो असंभव है!”, दोनों दोस्त एक साथ बोल पड़ते हैं।
“ठीक है तो फिर यहाँ से चले जाओ…इन तीन कामों को ना कर पाने के कारण मैं हर एक काम के लिए 4 स्वर्ण मुद्राएँ काट रहा हूँ…”
मक्कार सेठ की इस धोखाधड़ी से उदास हो कर दोनों दोस्त नगर से जाने लगते हैं। उन्हें ऐसे जाता देख एक चतुर पण्डित उन्हे अपने पास बुलाता है और पूरी बात समझने के बाद उन्हें वापस सेठ पास भेजता है।
सेठ के पास पहुँच दोनों मित्र बोलते हैं, “सेठ जी अभी आधा दिन बाकी है, हम आपके तीनो काम किये देते हैं।”
और तीनो दूकान के अन्दर घुस बड़ी सुराही को तोड़-तोड़ कर छोटी के अन्दर डाल देते हैं। सेठ मन मसोस कर रह जाता है पर कुछ कर नहीं पाता है।
इसके बाद दोनों गीले अनाज को दूकान के अन्दर फैला देते हैं।
“अरे, फैलाने भर से भला ये कैसे सूखेगा…इसके लिए तो धूप और हवा चाहिए…”, सेठ मुस्कुराते हुए कहता है।
“देखते जाइए…”, ऐसा कहते हुए दोनों मित्र हथौड़ा उठा आगे बढ़ जाते हैं।
इसके बाद दोनों मिलकर दूकान की दीवार और छत तोड़ डालते हैं….जिससे वहां हवा और धूप दोनों आने लगती है।
क्रोधित मित्रों को सेठ और उसके आदमी देखते रह जाते हैं…किसी की भी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं होती।
“अब आखिरी काम बचा होता है…”, दोनों मित्र तलवार ले कर सेठ के सामने खड़े हो जाते है और कहते हैं, “मालिक आप के सिर का सही सही वज़न तौलने के लिए इसे धड़ से अलग करना होगा। कृपया बिना हिले स्थिर खड़े रहें।”
अब सेठ को समझ आ जाता है कि वह गरीबों का हक इस तरह से नहीं मार सकता और बिना कोई और नाटक किये वह उन दोनों को 12 – 12 स्वर्ण मुद्रायेँ सौप देता है ।
Moral of the story: बेईमानी का फल हमेशा बुरा ही होता है।
Panchtantra Stories in Hindi With Moral
पंचतंत्र की पांचवी कहानी: महामूर्ख नाई
एक नगर में बहुत ही दयालु पति-पत्नी रहते थे। वे आर्थिक रूप से संपन्न थे और पूजा-पाठ, दान-धर्म में बढ़-चढ़ कर हिसा लेते थे। उनके नेक व्यवहार की कीर्ति दूर-दूर तक थी और अक्सर उनके घर में मेहमानों का ताता लगा रहता था।
समय कभी एक सा नहीं रहता है। एक बार उनके ऊपर घोर विपत्ति आ जाती है और वे कंगाल हो जाते हैं। धीरे-धीरे सभी उनसे मुंह मोड़ लेते हैं और कुछ तो उन्हें अपमानित करने से भी बाज नहीं आते।
पति-पत्नी इसे अपने पिछले जन्मो के कर्म का दंड मान लेते हैं और दरिद्रता में अपना जीवन यापन करने लगते हैं। एक दिन उनके द्वार पर एक चमत्कारी भिक्षुक आता है और भिक्षा मांगने लगता है। घर में कुछ नहीं होता, पति-पत्नी असमंजस में पड़ जाते हैं कि भिक्षुक को क्या दान दें?
जब कुछ नहीं मिलता तो दंपत्ति घर में बचा मुट्ठी भर चावल भिक्षुक को दान कर देते हैं।
भिक्षुक अन्तर्यामी होता है, वह इस दान से अतिप्रसन्न हो जाता है और उनसे कहता है-
मैं कल सुबह तुम्हारे द्वार पर फिर आऊंगा…जैसे ही मैं दरवाजा खट-खटाउ तुम दरवाजा खोलना और मेरे सर पर डंडे से प्रहार करने लगना…ऐसा करने से मेरे सर के सारे बाल स्वर्ण में परिवर्तित हो भूमि पर गिर जायंगे और तुम लोग उसे एकत्र कर पुनः धनवान बन जाओगे।
अगले दिन जब भिक्षुक आया तब पति-पत्नी ने ऐसा ही किया। भिक्षुक की बात सच निकली उसके सारे बाल स्वर्ण में बदल गए और एक बार फिर दंपत्ति पहले की तरह धनवान हो गए।
भिक्षुक के जाते ही सड़क के उस पार के बच्चे का बाल बना रहा नाई यह सब देख रहा होता है। वह मन ही मन सोचता है—” अच्छा तो ये है इनके धनवान होने का राज…ऐसे तो मैं भी धनवान बन सकता हूँ…”
और ऐसा सोचकर वह शहर के एक जाने-माने भिक्षुक के पास जाता है और अगले दिन सुबह-सुबह उन्हें अपने घर भोजन पर आमंत्रित करता है। प्रातः काल होते ही एक भिक्षुक नाई के द्वार पर पहुँच दरवाजा खटखटाता है।
नाई तो मानो इसी ताक में बैठा रहता है। वह फ़ौरन दरवाजा खोलता है और भिक्षुक के सर पर प्रहार करने लगता है।
देखते-देखते भिक्षुक लहू-लुहान हो जाता है।
खून देखकर नाई के होश उड़ जाते है…वह समझ नहीं पाता है कि ये सब क्या हो रहा है???
भिक्षुक नाई के इस व्यवहार से क्रोधित हो राजा से उसकी शिकायत कर देता है और राजा नाई को पागलखाने भिजवा देता है।
Moral of the story: किसी का अँधा अनुसरण नहीं करना चाहिए वरना बाद में पछताना पड़ता है
Written by Vaibhav singh
No comments:
Post a Comment